तुलसी एक घरेलू नाम बन गया है, जिसे भारत में लगभग हर कोई जानता है। इसके उच्च आध्यात्मिक महत्त्व के अलावा, इसने स्वास्थ्य और सौंदर्य प्रसाधनों के क्षेत्र में भी अपना स्थान बना लिया है। प्रदूषण को कम करने में भी तुलसी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। अब समय आ गया है कि दुनिया प्रदूषण से निपटने के लिए तुलसी को एक स्थायी समाधान के रूप में अपनाये।
यह एकमात्र ऐसा पौधा है जो ओजोन उत्पन्न करता है। यह दिन में 4 घंटे नवजात ऑक्सीजन के साथ ओजोन छोड़ता है और शेष घंटों में यह ऑक्सीजन अणुओं का उत्पादन करता है। यह अनोखी घटना केवल तुलसी के लिए है। पानी के फोटोलिसिस के दौरान ऑक्सीजन का उत्पादन एक सामान्य तंत्र है जो हर पौधे में होता है। तुलसी ऑटो-ऑक्सीकरण से गुजरती है, जहाँ सूर्य से आनेवाली अल्ट्रावायलेट किरणों के प्रभाव के कारण, मोनोएटोमिक ऑक्सीजन वायुमंडलीय ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करके ओजोन बनाती है।
इसकी पत्तियों में एल्डिहाइड, कीटोन और एस्टर होते हैं, जिनसे विभिन्न चयापचय संबंधी क्रियाएँ होती हैं जिससे पत्तियों के रंध्र के माध्यम से ऑक्साइड गैसें छूटती हैं। इसके अतिरिक्त, तुलसी आसपास से जहरीली गैसों को अवशोषित करती है। नियंत्रित ग्रीनहाउस प्रयोगों से पता चला है कि तुलसी का एक पौधा प्रति घंटे 0.09 mi ऑक्सीजन और 0.006 mi ओजोन छोड़ सकता है और 0.08 mi प्रति घंटे अवशोषित करके प्रदूषकों की जगह ले सकता है। यह प्रक्रिया तुलसी को एक प्रभावी प्रदूषक-विरोधी बनाती है।
तुलसी एक प्राकृतिक वायु शोधक है जो अपने आसपास के 100 वर्ग फुट के दायरे में हवा को साफ करती है। इसका पौधा वायु प्रदूषण से निपटने में अत्यधिक प्रभावी है। सात अजूबों में से एक, ताज महल को प्रदूषण के प्रभाव से बचाने के लिए इसके चारों ओर हजारों तुलसी के पौधे उगाए गए हैं। इससे स्मारक को अपना रंग और चमक बरकरार रखने में मदद मिलती है। 2014 में संत श्री आशारामजी बापू ने तुलसी के लाभों को आम आदमी तक पहुँचाने के लिए तुलसी पूजन दिवस की शुरुआत की। इस पर्व के अनेक लाभों में से एक लाभ इसका सकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव है, जो समय की माँग बन गया है। बापूजी के तुलसी के व्यापक प्रचार के पीछे उनका दृष्टिकोण वायु गुणवत्ता में सुधार करना और प्रदूषण को कम करना भी है।
पर्यावरणीय लाभों के अलावा तुलसी कई आध्यात्मिक और औषधीय लाभ भी प्रदान करती है। पश्चिमी प्रभाव के कारण, 25 दिसम्बर से 1 जनवरी तक की अवधि में रेव पार्टियों के कारण शराब और नशीली दवाओं के सेवन में वृद्धि देखी जाती है, जिससे दुर्घटनाएँ, अपराध और आत्महत्याएँ होती हैं। पर्यावरण और वैचारिक प्रदूषण दोनों का व्यावहारिक और व्यापक रूप से स्वीकृत समाधान प्रदान करने के लिए, दूरदर्शी संत और महान समाज सुधारक संत श्री आशारामजी बापू ने वर्ष 2014 से 25 दिसम्बर को तुलसी पूजन दिवस मनाने की परम्परा शुरू की। दुनिया भर में व्यापक समारोहों के साथ-साथ भारत में भी हजारों कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
यह उत्सव विभिन्न रूप लेता है, कुछ लोग तुलसी के पौधे वितरित करते हैं, अन्य लोग ऑडियो-विडियो माध्यमों से लोगों को तुलसी के लाभों के बारे में शिक्षित करते हैं और कुछ सामूहिक तुलसी पूजा समारोहों की व्यवस्था करते हैं। विभिन्न मीडिया और सामाजिक प्लेटफार्मों पर व्यापक अभियानों के साथ कई संकीर्तन यात्राओं में भी दिसम्बर के महीने में अनेकानेक लोग सहभागी होते हैं।
दुनिया को तुलसी के महत्त्व के बारे में बताने के अलावा, इस आयोजन के माध्यम से तुलसी के पौधों को वितरित करके एक स्वस्थ पर्यावरण में सक्रिय रूप से योगदान भी दिया जाता है। इससे बेहतर भविष्य और सुरक्षित पारिस्थितिक परिदृश्य का मार्ग प्रशस्त होता है। आज की बिगड़ती पर्यावरणीय परिस्थितियों में तुलसी का पौधारोपण – यह समय की माँग है। तुलसी अपने प्रदूषण रोधी गुणों के कारण समाज के लिए एक आवश्यकता बन गयी है।
तुलसी पूजन जैसे कार्यक्रमों का समर्थन और देशभर में विभिन्न स्थानों पर इसका आयोजन प्रदूषकों को कम करने और सभी के लिए एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण करने में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आइये… हम सभी मिलकर एक बेहतर और स्वस्थ राष्ट्र निर्माण की दिशा में प्रयास करें।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई ।
तुलसी माता करे सबकी भलाई ।।
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तुलसी एक प्राकृतिक वायु शोधक है जो अपने आसपास के 100 वर्ग फुट के दायरे में हवा को साफ करती है। तुलसी का पौधा वायु प्रदूषण से निपटने में अत्यधिक प्रभावी है। सात अजूबों में से एक, ताज महल को प्रदूषण के प्रभाव से बचाने के लिए इसके चारों ओर हजारों तुलसी के पौधे उगाए गए हैं। इससे स्मारक को अपना रंग और चमक बरकरार रखने में मदद मिलती है। 2014 में संत श्री आशारामजी बापू ने तुलसी के लाभों को आम आदमी तक पहुँचाने के लिए तुलसी पूजन दिवस की शुरुआत की।इस पर्व के अनेक लाभों में से एक लाभ इसका सकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव है, जो समय की माँग बन गया है। बापूजी के तुलसी के व्यापक प्रचार के पीछे उनका दृष्टिकोण वायु गुणवत्ता में सुधार करना और प्रदूषण को कम करना भी है।